कौन है ये ‘सत्ता-परिवर्तन का मास्टर’: किर्गिस्तान, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश… डोनाल्ड की ‘लू’ में एक-एक कर जलते जा रहे देश, बीच चुनाव में पहुँच गया था चेन्नई

बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन हो गया है। प्रधानमंत्री रहीं शेख हसीना को पद से इस्तीफा देकर मुल्क छोड़ना पड़ा, उन्होंने फ़िलहाल भारत में शरण ली हुई हैं। भारत के कई वामपंथी/इस्लामी पत्रकारों ने इसे ‘लोकतंत्र एवं युवा शक्ति की विजय’ बता कर प्रचारित किया, जबकि वहाँ कई मंदिरों पर हमले हो चुके हैं, हिन्दू नेताओं और पत्रकारों की हत्याएँ हुई हैं। भीड़ को PM आवास ‘गण भवन’ में पूर्व महिला प्रधानमंत्री की ब्रा और ब्लाउज लहराते हुए देखा गया। पूरा आंदोलन बांग्लादेश के स्वतंत्रता सेनानियों ‘मुक्ति योद्धाओं’ के परिवारों का आरक्षण खत्म कराने को लेकर पैदा हुआ था।

ये थी बांग्लादेश की परिस्थिति, जिसके बारे में बहुत अधिक विवरण देने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि अब तक सोशल मीडिया से लेकर TV तक की खबरों से आप तस्वीरें-वीडियो देख रहे होंगे। यहाँ सवाल इसके विश्लेषण का है कि क्या बांग्लादेश में वही हो रहा है जो दिख रहा है? अंतरराष्ट्रीय मामलों में अक्सर पर्दे के पीछे बहुत कुछ चलता रहता है, कुछ किरदार ऐसे होते हैं जो दिखाई नहीं देते। बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन में जिस किरदार का नाम आ रहा है, वो है – डोनाल्ड लू। आइए, बताते हैं कि ये शख्स है कौन।

कौन हैं डोनाल्ड लू, बीच चुनाव में किया था भारत का दौरा
डोनाल्ड लू अमेरिका के एक राजनयिक हैं, जो फ़िलहाल दक्षिण एवं मध्य एशिया मामलों में एसिस्टेंट सेक्रेटरी हैं। इससे पहले वो अल्बानिया और किर्गिस्तान में अमेरिका के राजदूत रहे हैं। पुणे स्थित ‘ग्लोबल स्ट्रैटेजी फाउंडेशन’ के संस्थापक डॉ अनंत भागवत ने मई 2024 में कहा था कि भारत में डोनाल्ड लू घृणा की विषयवस्तु बनते हैं, क्योंकि वो भारतीय लोकतंत्र में हस्तक्षेप करने का प्रयास करते हैं। जनवरी 2023 में खबर आई थी कि भारत के विपक्षी नेता राहुल गाँधी ने अमेरिका स्थित ‘व्हाइट हाउस’ में एक गुप्त बैठक की थी। बताया जाता है कि डोनाल्ड लू भी वहाँ मौजूद थे। हालाँकि, भारत के विदेश मंत्रालय के पास इससे संबंधित कोई जानकारी नहीं थी।

अमेरिका पूरी दुनिया के मानवाधिकार का ठेका लेकर भी बैठा रहता है। डोनाल्ड लू ने भी भारत में मोदी सरकार के कार्यकाल में मानवाधिकार को लेकर चिंता जताई थी। भारत में कई लोगों के कान तब खड़े हो गए थे, तब लोकसभा चुनाव 2024 के बीच में डोनाल्ड लू यहाँ के दौरे पर पहुँचे। उस दौरान वो बांग्लादेश और श्रीलंका भी गए थे। डॉ अनंत भागवत ने तब कहा था कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बायडेन का प्रशासन भारत के एक स्थिर सरकार नहीं चाहता है, क्योंकि मोदी सरकार के एक दशक में भारत की विदेश नीति मजबूत रही है, अपनी शर्तों पर चलती रही है, स्थिर रही है।

और हाँ, डोनाल्ड लू चुनाव के बीच राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली नहीं बल्कि तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई पहुँचते हैं जहाँ द्रविड़ राजनीति का बोलबाला है और भाजपा लड़ाई में नहीं रहती। तमिलनाडु की सत्ताधारी पार्टी DMK नेताओं की तरफ से ही देश को खंडित कर के एक अलग देश ‘द्रविड़नाडु’ की माँग होती रही है। अमेरिका की तरफ से एक बयान में कहा गया कि ‘दक्षिण भारत से द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने’ के लिए वो चेन्नई गए थे। वो बांग्लादेश भी गए थे, जहाँ शेख हसीना चौथी बार जीत कर लौटी थीं। बांग्लादेश में अमेरिकी राजदूत पीटर हास पर वहाँ की विपक्षी पार्टी BNP के समर्थन के आरोप लग चुके हैं, जिसने चुनाव का बहिष्कार किया था।

शेख हसीना के करीबियों का तब मानना था कि अमेरिका लगातार ढाका को चीन के खिलाफ लॉबिंग में शामिल करना चाहता है। इंडो-पैसिफिक में अमेरिका लगातार बांग्लादेश को पूरी तरह अपनी तरफ करने में लगा हुआ था। बांग्लादेश में भी मानवाधिकार को लेकर अमेरिका ने चिंताएँ जताई थीं, चुनाव से पहले। मार्च 2023 में जब अमेरिका की ‘सीनेट फॉरेन अफेयर्स कमिटी’ के समक्ष डोनाल्ड लू पेश हुए थे, तब भी उन्होंने भारत में मानवाधिकार को लेकर चिंता जताई थी। उन्होंने जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव का न हों और ‘जारी मानवाधिकार हनन’ पर चिंता जाहिर की थी।

जम्मू कश्मीर को लेकर भी डोनाल्ड लू ‘चिंतित’
जबकि जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद-370 व 35A को निरस्त कर उसे केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा दिया गया। इसके बाद वहाँ पत्थरबाजी की घटनाएँ कम हुई हैं, एक साल में 2 करोड़ से अधिक लोग पर्यटन के लिए पहुँचे हैं। लेकिन, अमेरिका को वहाँ चुनाव की चिंता है। डोनाल्ड लू ने कहा था, “हम पूरे देश में मुस्लिमों व अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ भेदभाव की के साथ-साथ NGOs को प्रतिबंधित किए जाने की खबरों पर बारीकी से नज़र बनाए हुए हैं। ये महत्वपूर्ण है कि एक साझेदार के रूप में हम भारत में परेशान करने वाली घटनाओं को लेकर आवाज़ उठाएँ।” साथ ही ताइवान-भारत के संबंधों को लेकर भी डोनाल्ड लू ने बयान दिया था।

उन्होंने कहा था कि ताइवान के नियंत्रण वाले समुद्री क्षेत्र में भारत के जहाज देखे गए हैं और ये ताइवान की सुरक्षा को लेकर उसे आश्वासन देने के बीच प्रतीकात्मक रूप से काफी महत्वपूर्ण है। साफ़ है, अमेरिका एक तरह से भारत को चीन के खिलाफ हथियार के रूप में इस्तेमाल करना चाहता है। उन्होंने जम्मू कश्मीर में ‘बड़े पत्रकारों’ को गिरफ्तार किए जाने का दावा किया था। साथ ही कहा था कि अमेरिका इस मामले में भारत पर दबाव बनाएगा कि वो कश्मीरियों के प्रति अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करे।

बता दें कि कश्मीर में अब तक 70 सरकारी कर्मचारी आतंकियों की मदद करने को लेकर बर्खास्त किए जा चुके हैं। कार्रवाई उन्हीं पर की जाती है, जो देश के खिलाफ काम में लिप्त रहते हैं। जैसे, ‘कश्मीर वाला’ नामक मीडिया संस्थान के संपादक को जेल हुई क्योंकि फहद शाह ने आतंकवाद का महिमामंडन किया था। बताइए, क्या किसी अन्य देश को इसमें हस्तक्षेप का अधिकार है? पाकिस्तान में भी अप्रैल 2022 में चुने हुए प्रधानमंत्री इमरान खान को अपदस्थ कर के अस्थायी सरकार बनाई गई जिसमें कई दलों का गठबंधन शामिल था।

पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका…
खुद इमरान खान आरोप लगा चुके हैं कि विदेशी हस्तक्षेप से उन्हें हटाया गया और इसमें डोनाल्ड लू का हाथ था। बताया जाता है कि यूक्रेन से युद्ध के बीच अमेरिका द्वारा रूस पर प्रतिबंध लगाए जाने के बावजूद इमरान खान उससे संबंध बढ़ा रहे थे, इसीलिए USA नाराज़ था। डोनाल्ड लू ने इस पर सवाल किए जाने पर इसे पूरी तरह झूठ और ‘कंस्पिरेसी थ्योरी’ बताया था। उन्होंने इस आरोप को एकदम नकार दिया था। इन सबसे पता चलता है कि दक्षिण एशिया में अमेरिका का ‘डीप स्टेट’ अपना हस्तक्षेप बढ़ाना चाहता है।

डोनाल्ड लू ने बांग्लादेश में ‘राजनीतिक सुधारों’ की भी बात की थी, साथ ही खालिदा जिया को अमेरिकी समर्थन पर वहाँ शेख हसीना की पार्टी ‘आवामी लीग’ ने आवाज़ उठाई थी। आज वहाँ ‘आवामी लीग’ के नेताओं को मारा जा रहा है। अब आता है श्रीलंका। श्रीलंका भी अमेरिका-चीन के खेल में फँस गया। हमने जुलाई 2022 में श्रीलंका में वही तस्वीरें देखी थीं जो आज बांग्लादेश में देख रहे हैं। तब श्रीलंका के राष्ट्रपति भवन में घुस कर प्रदर्शनकारी स्विमिंग पुल में नहा रहे थे। श्रीलंका पर चीन का कर्ज बढ़ता चला जा रहा है, हुए वहाँ चीनी प्रभाव को रोकने के लिए अमेरिका बेचैन था।

इस साल डोनाल्ड लू ने दावा किया है कि श्रीलंका अब वापसी कर रहा है। श्रीलंका में भी विरोध प्रदर्शनों के परिणाम वही हुए थे, गोटाभया राजपक्षे को राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देना पड़ा था और देश छोड़ना पड़ा था। जबकि उनके भाई महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्री पद छोड़ना पड़ा था। आज कोलम्बो वेस्ट टर्मिनल पोर्ट के लिए अमेरिका फंडिंग कर रहा है। ‘नए’ श्रीलंका की तारीफ़ करते हुए डोनाल्ड लू ने भारत-बांग्लादेश को रोहिंग्या को लेकर चेताया था। बता दें कि रोहिंग्या घुसपैठिए एक बड़ी समस्या हैं भारत के लिए, वो यहाँ आकर अपराध करते हैं और कइयों ने भी फर्जी दस्तावेज तक बना लिए हैं।

USAID के माध्यम से श्रीलंका को वित्तीय सहायता दी गई। USAID ‘अंतरराष्ट्रीय विकास’ की संस्था है, हालाँकि, इस पर सत्ता परिवर्तन के लिए फंडिंग के आरोप भी लगते रहे हैं। अब सवाल उठता है कि क्या डोनाल्ड लू भारत में भी ऐसा ही कुछ करना चाहते हैं जो पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका में हुआ? भारत में ये बहुत मुश्किल है क्योंकि ये एक विशाल देश है जहाँ सभी राज्य व केंद्र शासित प्रदेशों की अपनी-अपनी अर्थव्यवस्था है। यहाँ हर क्षेत्र में लोगों की आय के स्रोत और प्राथमिकताएँ बदलती रहती हैं, कृषि ही एक ऐसा पेशा है जो पूरे देश को एक करता है।

भारत में मोदी सरकार से दिक्कत
फिर भी, अमेरिका का डीप स्टेट भारत में एक मजबूत मोदी सरकार की जगह गठबंधन वाली भाजपा विरोधी सरकार को प्राथमिकता देगा। इसके लिए माहौल बनाया जाना शुरू हो गया है। ‘अग्निवीर’ को लेकर भ्रम फैलाया गया, संसद में खुलेआम झूठ बोला गया। जाति जनगणना को लेकर हिन्दुओं को बाँटने का प्रयास किया गया। संसद में राहुल गाँधी ने कहा कि वो जाति जनगणना करा के रहेंगे। ‘किसान आंदोलन’ के दौरान हमने लाल किले पर खालिस्तानी झंडा देखा था, 1 साल तक दिल्ली की सीमाओं को घेर कर रखा गया था। आज भी कई किसान पंजाब-हरियाणा के शम्भू बॉर्डर पर बैठे हुए हैं।

ये सभी ऐसे मुद्दे हैं, जिनका इस्तेमाल कर के देश की जनता के एक बड़े वर्ग को भड़काया जा सकता है। पत्रकार हर विरोध प्रदर्शन पर सवाल पूछने पहुँच जाते हैं अमेरिकी राजनयिकों से, यहाँ तक कि कंगाल पाकिस्तान के पत्रकार भी UN में भारत के मुद्दों को लेकर बड़े चिंतित रहते हैं। खासकर जब अमेरिका ने डोनाल्ड लू जैसे अधिकारी को लगा रखा हो, तो शक की गुंजाइश तो रहती ही है। अब अल्बानिया में उनके कार्यकाल को ही ले लीजिए। उस दौरान भी उन्होंने वहाँ की सरकार को उखाड़ फेंकने की बात की थी। उन्होंने जनता को नेताओं से सवाल पूछने और सरकार बदल डालने के लिए कहा था।

अल्बानिया-किर्गिस्तान में भी राजदूत रहते दिखाया ‘कमाल’
संसदीय से लेकर न्यायिक सुधारों की बात करते हुए उन्होंने अल्बानिया के युवाओं को कहा था कि वो अपने अभिभावकों से अच्छा जीवन जीने के लिए अपनी सरकार पर दबाव बनाएँ। इतना ही नहीं, अमेरिकी राजदूत ने तब छोटे से देश अल्बानिया के कई शहरों में घूम-घूम कर युवाओं से बातचीत की थी। इसी तरह जब डोनाल्ड लू किर्गिस्तान में अमेरिकी राजदूत थे, तब वहाँ भी राजनीतिक तनाव का दौर चल रहा था। 2018 से 2021 तक वो वहाँ रहे, और किर्गिस्तान में उस दौरान एक बड़ा विरोध प्रदर्शन हुआ। जून 2019 में सांसदों ने तत्कालीन राष्ट्रपति सूरोनबे शिरिपोविच जीनबेकोव पर आपराधिक मामला चलाने के लिए वोट किया।

2020 में उन्हें आखिरकार इस्तीफा देना पड़ा था, क्योंकि उनके खिलाफ कई विरोध प्रदर्शन हुए थे। वहाँ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। अक्टूबर 2020 में हुए चुनावों में धाँधली के आरोप लगे थे। बताया जाता है कि राष्ट्रपति सूरोनबे शिरिपोविच जीनबेकोव पर इस्तीफे को लेकर दबाव बनाने में अमेरिका का भी हाथ था। अल्बानिया में तो अभी भी वहाँ के प्रधानमंत्री एडी रामा को हटाने के लिए विरोध प्रदर्शन चल रहे हैं। कई शहरों में प्रदर्शनों को रोकने के लिए बल-प्रयोग करना पड़ा। इस तरह डोनाल्ड लू का कनेक्शन किर्गिस्तान-अल्बानिया में तनाव से भी है।

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