भिलाई विधानसभा के पराजित प्रत्याशी और सीनियर भाजपा लीडर प्रेम प्रकाश पांडेय ने विधायक देवेंद्र यादव के खिलाफ चुनाव याचिका दायर की है, जिसकी सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है।
दरअसल, देवेंद्र यादव पर चुनाव आयोग से जानकारी छिपाने का आरोप लगाया गया है, जिसे लोक प्रतिनिधित्व कानून के खिलाफ बताते हुए उसके निर्वाचन को शून्य घोषित करने की मांग की गई है।
भाजपा के प्रेम प्रकाश पांडेय देवेंद्र से हार गए थे
इस बार चुनाव में भिलाई विधानसभा क्षेत्र से भाजपा ने पूर्व विधानसभा अध्यक्ष प्रेम प्रकाश पांडेय को प्रत्याशी बनाया था। वहीं, कांग्रेस से देवेंद्र यादव उम्मीदवार घोषित किए गए थे। चुनाव परिणाम आया तो कांग्रेस के देवेंदर यादव ने भाजपा के प्रेम प्रकाश पांडेय को हरा दिया।
देवेंद्र यादव की विधायकी को चुनौती देते हुए प्रेमप्रकाश पांडेय ने हाईकोर्ट में चुनाव याचिका दायर की है। इसमें देवेंद्र यादव पर नामांकन पत्र में आपराधिक केस और संपत्ति की जानकारी छिपाने का आरोप लगाया गया है। याचिका में कहा गया है देवेंद्र यादव ने लोक प्रतिनिधित्व कानून का उल्लंघन किया है।
जानकारी छिपाने पर है निर्वाचन शून्य करने का प्रावधान
याचिका में बताया गया है कि चुनाव आयोग प्रत्येक प्रत्याशी से शपथपत्र में आपराधिक और संपत्ति संबंधी मामलों की जानकारी मांगता है। लेकिन, आयोग से जानकारी छिपाना प्रावधानों का उल्लंघन है। यदि कोई उम्मीदवार इस तरह की जानकारी छिपाता है, तो उसका निर्वाचन शून्य घोषित किया जा सकता है
याचिका में कहा गया है देवेंद्र यादव ने जनप्रतिनिधित्व कानून का उल्लंघन कर अपनी संपत्ति की जानकारी छिपाई है। साथ ही आपराधिक केस का भी शपथत्र में जिक्र नहीं किया है।
हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा
इस मामले की सुनवाई के न्यायमूर्ति राकेश मोहन पांडेय की सिंगल बेंच में हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता की तरफ से तर्क दिया गया कि रायपुर और बिलासपुर कोर्ट ने देवेद्र यादव को समन जारी किया था, जिसमें उसे फरार बताया गया है। वहीं देवेंद्र यादव की तरफ से उनके वकील ने तर्क दिया और आरोपों को निराधार बताया। सभी पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है।
आयोग को नहीं बनाया गया पक्षकार
याचिका में यह भी तर्क दिया गया है कि विधायक यादव ने आयोग के दिशानि्देश और जनप्रतिनिधित्व कानून का खुला उल्लंघन करते हुए संपत्ति के संबंध में महत्वपूर्ण तथ्यों को भी दबाने का प्रयास किया है। उन्होंने साल 2018-2019 में उन्होंने अपनी आय 2 लाख रुपए बताई थी।
नामांकन पत्र जमा करते समय प्रस्तुत शपथ पत्र में भी अपनी दो लाख की आय होना बताया है। इस चुनाव याचिका में जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधानों को ही प्रमुख आधार बनाया था। यही वजह है कि चुनाव आयोग को पक्षकार नहीं बनाया गया है।