कहते हैं कि शिक्षा प्रदान करना सबसे पुनीत कार्य है और शिक्षक माता पिता के पश्चात सर्वथा पूज्यनीय होते हैं। लेकिन यह कैसे शिक्षक हैं जो अध्यापन की शिक्षा ग्रहण करने महाविद्यालय ही नहीं आते और घर बैठे ही बीएड/डीएड डिग्रीधारी हो जाते हैं। ऐसा नहीं है कि जिम्मेदार अधिकारियों को इसकी जानकारी नहीं है किंतु संभवतः किसी प्रलोभन से सब संभव होता प्रतीत होता है। कई महाविद्यालय ऐसे हैं जहां नाम को तो शिक्षक हैं लेकिन यथार्थ में कोई शिक्षक उपलब्ध नहीं। हमारी टीम ने कई महाविद्यालयों की पड़ताल की जिनमें न तो छात्र छात्राएं थी और न ही शिक्षक ही थे। मजे की बात कि कई महाविद्यालयों में तो भृत्य भी नहीं थे। जिला जांजगीर चांपा के 5 बीएड महाविद्यालयों में जहां हमारे रिपोर्टर और स्टिंगर गए वहां तो छात्रों ने महाविद्यालयों का भाव ही बता दिया। एक महाविद्यालय के स्टाफ ने नाम न छपने की शर्त पर बताया कि शिक्षकों के सिर्फ नाम ही हैं। वास्तव में वह शिक्षक कभी महाविद्यालय आते ही नहीं हैं और मात्र 2- 4 कर्मचारियों से ही कॉलेज संचालित हो रहे हैं।
बिलासपुर GPM जिले में तो कुछ महाविद्यालय प्रैक्टिकल तक में आने से छूट देते हैं और छात्र को सीधे परीक्षा में आने कहा जाता है। परीक्षा में पास होने की गारंटी भी महाविद्यालय दे रहे हैं। साफ समझ आता है कि शिक्षा का बाजार लगाने वाले इन व्यापारियों को न तो किसी कार्यवाही का डर है और न ही किसी को परवाह।
सत्यनाद द्वारा जल्द नाम तथा अनियमितताओं सहित सभी महाविद्यालयों की सूची जारी की जाएगी और उन अधिकारियों के नाम भी जो इस खेल में सम्मिलित हैं।